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मिश्रबंधु

मित्रधु-विनोद सं. १९८४ -- उदाहरण विश्व-विपंची के वादक हे विश्व-विमोहन, विभव-निधान ; हे सर्वेश्वर-जगन्नियंता, भाग्य-विधायक सब गुण. खान ! परमपिता परमेश्वर स्वामी, हे जग के प्रतिपालक ईश%B हे स्वतंत्रता के दाता, भवबंधन के नाशक जगदीश ! ज्वलित हृदय की विपुल वेदना हरनेवाले हे · भगवंत । जीवन-ज्योति जगानेवाले, अजर, असर, अखिलेश, अनंत ! वृहविश्व के चतुर प्रबंधक, नायक जग के प्रेमागार; हे गुरु ज्ञानी सोक्षप्रदायक, सब सुख दायक जगदाधार! अमरपुरी, जगतीतल - नंदन - कानन के हे दिव्य प्रकाश ! संत-हृदय के श्रेष्ठ प्रेम हे शिशुओं के स्वर्गीय सुहास ! हे भटकों के मार्ग प्रदर्शक, विरही के श्राश्रय छाधार! हे अनाथ के रक्षक - पालक, दुखियों के हित सदा उदार ! हे सरिता के सर-सार झर झर झरनों के कमनीय स्वरूप; विहँग-वृद के कलरव सुंदर सुमनों के सद्गंध अनूप । गिरि-गह्वर नीरव निशीथ हे निर्जन वन की अपुपस शांति शीतल मंद सुगंध पवन के दाता चंद्र सूर्य की कांति ! हे न्यायी सर्वोच्च निरीक्षक, निपुण नियामक विमल विधान ! कामधेनु धर्मिष्ठ व्यक्ति के पापी के संहारक निराकार प्राचार - सहित हे समदर्शी सर्वज्ञ सुजान ! प्रकृति-मंच के सुघड़ खिलाड़ी, अंतर्यामी 'देव' जहान । नाम-(४३६८) महादेवी वर्मा एम्० ए०, प्रयाग-निवासिनी। जन्म-काल-लगभग सं० १९६८। रचना-काल-सं० १९८४ ग्रंथ-(१) नीहार, (२) रश्मि, ( दोनो प्रकाशित स्वरचित छंदों के संग्रह)। 3 प्राया।