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मिश्रबंधु

सं० १५ उत्तर नूतन कर्पण, (५ 5 कल्पित स्वम का वर्णन ), (३) भरत-मिलाप, (४) कृष्णा- नव-कुसुम, (६) प्रपंच-पुराण (व्यंग्यात्मक अंथ, अपूर्ण), (७) सौमित्र-सौर्य-सुधा, (3) हृदय निकुंज । विवरण-ऊपर दिए हुए श्रापके ग्रंथ अभी अप्रकाशित रूप में हैं। कविता अच्छी है। उदाहरणा- जिसकी कृपा से देश की लाखों-करोड़ों नारियाँ । हैं भोगती वैधव्य दुख इस हिंद की सुकुमारियाँ । स्वर्गीय सुख का लोप जिसके पुण्य का परिणाम है; उस देव बाल-विवाह को युगहस्त जोड़ प्रणाम है।।। जिसकी कृपा से इस समय यह देश शनि-विहीन है जिसकी कृपा से सभ्य भारत' दीन हीन मलीन है। जिसका 'सनातन धर्म' सुख सौभाग्यदायक नाम है। उस देव बाल-विवाह को युगहस्त जोड़ प्रणाम है। २ । नाम-( ४३७२ ) जयचंद्र विद्यालंकार, प्रयाग। जन्स-काल-लगभग सं० १६१०। रचना-काल-सं० १९८५ विवरण- आप बड़े ही उत्साही कार्यकर्ता, कांगड़ी के स्नातक, गहन विद्वान् हैं। भारतीय इतिहास की रूप-रेखा नाम्नी अच्छी पुस्तक आपने लिखी है, जो हिंदोस्तानी एकेडेमी से छपी है। इसमें बड़े खोज और योग्यता से काम हुआ है । प्रायः ५००० पृष्ठों से ज़्यादा का अंथ है । पुरातत्व पर भी आप श्रम करते हैं। सम्मेवान के कार्यकर्ता है। नाम--( ४३७३) (राजकुमार) रघुवीरसिंह बी० ए०, सीतामऊ। जन्म-काल-लगभग सं० १९६४ ।