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मिश्रबंधु

उत्तर नूतन ललासा विवरण---श्राप मैथिल ब्राह्मण हैं। इन्होंने कतिपय पुस्तकें -बनाई हैं, किंतु वे अभी अप्रकाशित हैं । 'चौद' पत्रिका में आपकी रचनाएँ मुख्यतः प्रकट हुआ करती हैं। खड़ी बोली में उत्कृष्ट रचना करते हैं। उदाहरण-- मुरलिके ! सरस सुधा - अभिषिक्त, सुना जा फिर अपनी मृदु तान। निहित है-अंतर्हित जहाँ, विकल प्रणयी का अंतर्गान ! मदीय - स्मृति - पट पर अविलंब, भावुकतामय अभिराम; अंकित करती सजनि ! चित्र जो--- दिखला देती दृश्य भनक पा जिसकी मधुमय अहो ! राधिका भी तज देती मान; थिरकने लगती मुख पर तथा प्रणय-धन-मिलन मधुर मुसकान । तरगिजा की लहरी- ध्वनि-संग, मचलती चलती थी जो तान; मरी-सी मूक प्रकृति में शीघ्र ढाल देती थी जो नवप्रान । ( यहाँ भव-भीति-व्यथा से व्यथित, पड़ा हूँ मुरलि ! बना नियमान) सुना जा एक बार फिर वहीं, मुरलिके ! सुधा-सनी सुठि तान ! नाम-(४३७७ ) ब्रजनाथ रमानाथ भट्ट शास्त्री, बंबई।