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मिश्रबंधु

सं० १९८६ उत्तर नूतन मुसकाए, फिर गए लौट, मैंने तुमको न बुलाया; पा करके खो दिया किंतु, खोकर फिर तुम्हें न पाया। मुझे सालता नहीं अाज तेरा श्राकर फिर जाना; किंतु भूल मैं कभी नहीं सकता तैरा 'मुसकाना' । नाम-( ४३७६ ) हृदयनारायण त्रिपाठी (हृदयेश), कानपुर-निवासी। जन्म-काल-लगभग सं० १९६०। कविता-काल---सं० १९८५ ग्रंथ--स्फुट रचना। विवरण-श्राप व्रजभापा तथा खड़ी बोली दोनों में उत्कृष्ट कविता रचते हैं। अध्यापक है। हम आपको आजकल के पर- मोत्कृष्ट कवियों में समझते हैं। समय-संवत् १९८६ नाम-(४३८०) गंगाशरणसिंह (साहित्यरत्न), खरगपुर, बिहटा (पटना)। जन्म-काल-सं० १६६१ रचना-काल-सं० १९८६ . अंथ-(१) विचार-प्रवाह, (२) पद्य-प्रवाह, (३) साहित्य- परिचय। विवरण-आप चुटकीदार कविता करते हैं । इनका सव्यंग्य साहित्य उत्कृष्ट भी है। उदाहरख-- समालोचक समालोचकों में मेरा बस नाम प्रथम है सुके नहीं भजता, वह लेखक महा अधम है। ।