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मिश्रबंधु

. मिश्नबंधु-विनोद सं० १९८६ लेखक नौ' कवियों का हूँ मैं भाग्य-विधाता; मुझे प्रशंसा निंदा अनुचित करना श्राता । खा चोट करारे कलस के कविवर पड़े कराहिए; भर नजर तड़पता देख लूँ, और मुझे क्या चाहिए । लेखक हूँ अरसिक - मूर्धन्य बला से, पर हूँ लेखक, हिंदी- पत्रों को सुंदर लेखों का प्रेपक। हिंदी - हत्याकारी हूँ, व्याकर्ण-व्याध हूँ रस-वस कुछ न जानता हूँ, मैं तो अगाध हूँ। श्रीसंपादकजी खोलकर मुझको खूब सराहिए लेखों को मेरे छाप दें, और मुझे क्या चाहिए। प्रकाशक अरे लेखको ! हमी प्रकाशक कहलाते हैं जो तुमको तम से प्रकाश में ले आते हैं। इतना ही उपकार हमारा है क्या कुछ कम ? पुरस्कार फिर कहो मांगते हो क्यों हरदम । जरा तुम्हीं सोचो तुम्हें करना ऐसा चाहिए। हैं हम पूँजीपति, हमैं तो हाँ पैसा चाहिए। नाम-(४३८१ ) जनार्दन झा 'द्विज', ग्राम रामपुरडीह, जिला भागलपुर। जन्म-काल-सं० १९६१ । रचना-काल-सं० १९८६ । ग्रंथ-(१) स्फुट रचनाएँ, (२) किललय (गल्प), (३) मालिका ( कहानी-संग्रह ), (४) अनुभूति । विवरण- [-श्राप पं० उचितलाल झा के सुपुत्र हैं । इन्होंने लेखन- कला के अतिरिक्त वक्तृत्व तथा नाट्य-कला में भी जी लगाया है। 9