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मिश्रबंधु

सं० १९८६ उत्तर नूतन २७७ अाधुनिक छायावादी साहित्य तथा कहानियाँ भी आपने लिखी हैं। सं० १९२ के विहारी छात्र सम्मेलन में हिंदी तथा अँगरेजी में स्वर्ण- पदक प्राप्त किया। इस समय यह महाशय हिंदू-विश्वविद्यालय में अध्ययन कर रहे हैं । छंद सूक्ष्मदर्शिता-युक्त, भाव-पूर्ण लिखते हैं। उदाहरण- अश्रु करण प्राया द कलित किसलय-से अति सुकुमार विधुर मानस के मुंदु उच्छ्वास; नयन-जल में परिणत कर आज लिए हूँ तेरे पास। भरे इसके कण-कण में तीन जलन के हैं शाकुल संदेश बतावेंगे जो तुझको देव ! कठिन हैं कितने मेरे रलेश। रही सुझमें अवशेष न श्राज तड़प सकने तक की भी शक्ति किए रहता निशि-दिन बेचैन प्रलय, प्रकटा अपनी अनुरक्ति ! कसै क्या? रुक न सकेगा और अधिक नव उमड़े उर का ज्वार; रोक मत, रोने दे प्राणेश! रुदन ही है मेरा प्राधार । नाम-( ४३८२ ) बनारसी डेक 'मधुर', रतेठा (मुंगेर)। जन्म-काल-सं० १९६१। विवरण--- खड़ी बोली के सुकवि । .