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मिश्रबंधु

सं० १९८६ उत्तर नूतन . उदाहरण- विश्वोच्छ्वास बढ़े औधी से टकमाते हैं कहीं समीप; श्रोहो! उसने ही वाले हैं से झिलमिल तारों के दीप । -(४३८४) शारदाप्रसाद 'भंडारी' हरकुलियन-प्रेस, मुजफ्फरपुर। जन्स-काल-२० १९६१ । विवरण-सुकवि । उदाहरण-- जिज्ञासा यसुना-तट पर खड़ा शांत हो था ब्रज-वमिता फूलों की संजुल कलियों को देख बिहंसती थी सरिता । नील गगन से झांक- मोककर तारगण सुसकाते थिरक थिरकार चंद्रदेव चाकर शानंद बढ़ाते थे। पुष्पों की माला लेकर अंथर गति ले वह पाती थी 3 उस छवि की मंजुल चितवन रसिकों का चित्त बुराती थी। प्राकर रुकी, हँसी, फिर बोली "तुम क्यों यहाँ खड़े हो? निरख रहा 3 -