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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं० १९८७ ५८० नंदन वन सी छटा देख क्या तुम पथ मूल पड़े हो ? अथवा उस घनश्याम मूर्ति से तुम भी गए ठगे हो? या मुझ-ला निज को विनष्ट करने पर स्वयं लगे हो?" समय-संवत् १९८७ नाम-(४३८५) अवधविहारो श्रीवास्तव 'बिहारी', बिहार, पकड़ी नरोत्तम, सतजोड़ा बाजार, सारन । जन्म-काल-सं० १९६२ । रचना-काल-सं० १९८७ । विवरण-श्राप सुकवि हैं। उदाहरण- चिता अरी चिते ! चित-बीच लप-सा यह तेरा डसना कैसा? काली की कल किलकारी-सा अयकारी हँसना कैसा? धधक - धधककर जल उठती है, कभी मंद पड़ जाती है 1. जग की लाश निराशा काया दृश्य प्रकट दिखलाती है बन-देवी-सी सरित-कूल पर अनुपम तेज-राशि लसती किसी साधिका-सी निर्जन से विश्व रुदन पर जो हँसती। 1