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मिश्रबंधु

उत्तर नूतन १८३. स्वामी एम० ए०, ३ श्रीठा० चाँदसिंह तथा इन्होंने प्रेमाधम नाम से सं० १९८० मैं ला० संस्था स्थापित कर ये सब पुस्तकें तैयार की, जिनकी प्रशंसा पं. गौरीशंकर-हीराचंद अोझा तथा वाबू श्याम- सुंदर दास आदि सजनों ने की है। समय-संवत् १९८८ नाम-(४३६ ) जगदीशप्रसाद गिरीश'। जन्म-काल-सं० १९६६ । रचना-काल--सं० १९८८। ग्रंथ-(१) मुक्ति का द्वार, (२) स्फुट छंद। विवरण-मैनपुरी-निवाली पं. सत्यनारायण अग्निहोत्री थाने- द्वार के पुत्र । अाजकल सल्लाचा में रहते हैं। उद्धत देश-प्रेस के कारण सो बार कारागार हो पाए हैं। उदाहरण- हृदय, तू चल अनंत की ओर, इस विस्तृत तम-पूर्ण विश्व में ले स्मृति का दीप । सखे, खोजता तुम्हें पुकारूँ, श्राते नहीं समीप । छिपे किस निर्जन में चितचोर ? क्या होगा जल-हीन मीन का, स्वाति बिना जातक का हाल ? सरसिज की रवि-रहित दशा पर दृष्टि दया कर देते डाल । कहीं है इस श्राशा का छोर ? हृदय, तू चल अनंत की ओर। (एक मित्र की मृत्यु पर लिक्षित) जाम---(१३६०) जगदंबाप्रसाद शर्मा 'कलाधर'। जन्म-काल-सं०.१६६६ (पेसारा, जिला जौनपूर ) । रचना-काल-सं० १९८८