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मिश्रबंधु

१८६ मिश्रबंधु-विनोद सं० १९८९ रचना-काल-सं० १९८१ । ग्रंथ-(१) अभिमन्यु-वध, ( २ ) श्यामनीति, (३) ध्रुव-चरित्र, (४) सीय-स्वयंवर, (५) स्फुट छंद । विवरण-साँड़ी, जिला हरदोई के पं० राधाकृष्ण मिश्र के पुत्र । इंट्स पास । कुछ संस्कृत, उर्दू भी जानते हैं। आजकल भगवंत- नगर-हाईस्कूल के अवैतनिक हिंदी-अध्यापक हैं । होनहार कवि हैं। उदाहरण- कमल-सोम-सुहीरक-हार-सी, छबि-मई रवि-कांति लजावनी; सकल कल्मष-हारिणि पाचनी, सतत विष्णुपदी उर वासिनी। सुभग बीन धरे कर मंजु में, बसन शोभितं पीत नभामयी मुनुक कंकरण किंकिन की करें, सदय हो करुणामयि भारती। ( सीय-स्वयंवर से) चौपाई कबहुँ न नर की करिय हँसाई । श्याम भाग्य जानी नहिं जाई । गुण सिखियो बहुधा सुखदाई ; श्याम गुणहि की होति बड़ाई। ज्ञानी रंक सिलत बहुतेरे ; श्याम रमा भारती न नेरे। (श्यामनीति से) बस यही हमारी चिंता है, जो चिता-तुल्य जल उठती है; जिसकी भारी ज्वाला के आगे बुद्धि नहीं कुछ करती है । फिर चक्रव्यूह का भेद हमें कैसे तोड़ें, कुछ ज्ञान नहीं , अब ऐसे समै करें क्या हम ? झट कह देना आसान नहीं । बस यही माजरा है सारा, जो पुत्र तुम्हें बतलाया है; यह ही था शोक-भेद सब कुछ, जो हसने तुम्हें जताया है। (अभिमन्यु-वध से) नाम--(४३६४ ) रामेश्वर शुक्ल 'अंचल' । जन्म-काल-सं० १९७१।