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मिश्रबंधु

सें० १९७७ चक्र उत्तर नूतन ५8 तन ग्रीषम वर्षा नयन चारिज वदन हिमता शरद गंड भूपण शिसिर पग - पग बसत वसंत । परी मशहरी दुतिहरी ती मुख ताहि लखाय; चुयो चंद छवि मार लै सरद गगन गहाय । नाम-( ४३६६) शिवदुलारे मिश्र बी० ए०, बी० एल०, 'मधुकर', भागलपुर। जन्म-काल-सं० १९५४ । कविता-काल-सं० १६७६ । ग्रंथ-(१) तिलक-तरंग (पय-ग्रंथ, अप्रकाशित), (२) स्फुट लेख तथा छंद। विवरण- --आप पं० बनवारीलालजी मिश्र के तृतीय पुत्र हैं, और इस समय भागलपुर में वकालत करते हैं। स्थानीय हिंदी-सभा के मंत्री भी हैं । इनकी रचनाएँ खड़ी बोली तथा ब्रजभाषा, दोनो में हुआ करती हैं। पं० शिवरल मिश्र, भागलपुर द्वारा ज्ञात ] उदाहरण अब भयो जान हेमंत अंत, सजि लाज चल्यो ऋतुपति वसंत लखि भूप अनूपम तेजवंत जग फैलि रही सुपमा अनंत । दिसि देस दीप दीपति दिगंत, दुयाधि, दोष, दुख दल दुरंत.; सब किलकि कहत स्वागत बसंत', पै रोवत भारत हाय ! हंत! समय -संवत् १६७७ के अन्य कवि गण नाम-(४४००) अमरनाथ झा, प्रयाग। जन्म-काल-लगभग सं० ११५४ । रचना-काल-सं० १९७७ । ग्रंथ-पाठशालाओं की कुछ पुस्तकें । विवरण-इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रोफेसर ।