पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/६००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
६००
६००
मिश्रबंधु

सं० १९७८ चक्र उत्तर नूतन 3 गंग की तरंग में गिरीश' मंजु मीन हैं कि वाहिनी - अनंग के तुरंग रंग कारे हैं। मंजुल मयंक के ललाट पै दिठौना है कि, खंजरीट - छौना हेम-पीजरे में बारे हैं . छाजे छवि नैन कामिनी के भृगनैनी के कि, भ्राजे अरविंद पै मलिंद मतवारे हैं। कंचन के कूट पै धरे हैं कालकूट घट , शीश पै मयंक के कि राहु-केतु तारे हैं; सुकवि "गिरोश' ये पियूप के पियाले हैं कि गगनापगा में भानुजा के भौंर न्यारे हैं। ललित ललाम छवि धाम के सुद्वारे या कि, दामिनी के अंक में विराजे धन कारे हैं चंपक लता-सी तरुनी के नैन नीके हैं कि वउरे रसाल-द्रुम कोकिल विहारे हैं। केसरि के सस्य अंक बैठे दैनिशंक मृग पैठे विधु-मंडल कि मुदित चकोर ये; खेलत शिकार है शिकारी केतकी के कुंज , तपली 'गिरीश' जू कि सुरगिरि छोर ये। पुंज पै कुसुम के विराजै है शशक-शिशु , था कि छवि-गृह में घुसे हैं युग चोर ये; वाम लोचना के ललना के नैन बाँके हैं, कि मदन महीप के शिलीमुख कठोर ये । --( ४४१६ ) गिरीशचंद्र चतुर्वेदी, मैनपुरी। जन्म-काल-सं० १९५६ । कविता-काल-सं० १६७८ । विवरण-यह पंडित वनवारीलालजी के पुत्र हैं। >