पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/६०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
६०४
६०४
मिश्रबंधु

सं.१९७८ चक्र उत्तर नूतन ६ उदाहरण- कृष्णाचेतावनी अरे नराधम, स्वार्थ-भृत्य, क्या गर्व भरा है लाज नहीं, ले राजदंड तू अकड़ खड़ा है। अमल क्षात्र-कुल-विधु-कलंक तूने प्रकटाया ; पूज्य पिता का स्वत्व छीनकर मार भगाया । गुरु-शिशु-बध सब ही किया स्वार्थ साधने के लिये

अबला को बंदी किया, नीति-न्याय सब खो दिए। कूटनीति से दुष्ट प्रजा को फाँस लिया है। उसके वल फिर राजमुकुट ले नाश किया है । शिष्ट प्रजा ने न्यायनिष्ट तुझको था जाना; इसी हेतु निर्मीक चित्त निज प्रभु था माना । पटाक्षेप पर हट गया, रक्षक अब तक था बना; भक्षक निकला अंत में, कैसी दैव-विडंबना। नाम--(४४२७ ) लाल हरदेवसिंह प्यारेलाल', ग्राम सबहद विधूना, इटावा। जन्म-काल-लगमग सं० १९३३ । कविता-काल--सं० १९७८ । ग्रंथ-स्फुट छंद (लगभग २००)। विवरण-इनके पद्यों की एक प्रति लाल रघुनंदनसिंह वर्मा, सब- हद ( इटावा ) को प्राप्त हुई है, उसी में से निम्नलिखित उदाहरण दिया गया है। उदाहरण- प्रभु को भजन करो दिन-रात । श्रीस्वामी सचराचर व्यापक श्याम-गौर दोउ भ्रात, ताके वश तिहुँ लोक सदा हैं, तेहि सुमिरो हे तात !