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मिश्रबंधु

६०० मिश्रबंधु-विनोद सं. १९७६ चक्र . . छिन में रचै छिनहिं में मेटें, माया अलख लखात; ताको शेष, महेश स्टत नित, सुर सब सदा डरात । तन, मन से नित धरौ चित्त में धर्म करौ भाँत जड़-चेतन में, सब वस्तुन में, राम-हि-राम दिखात । मोहि गुरु केशवदास कृपा करि ज्ञान 'दियो हरषात ; कहत 'लाल हरदेवसिंह' जग अजवै चरित रहात । नाम-( ४४२८) विद्याधरजी मिश्र, मैनपुरी। "जन्म-काल-सं० १९५३ । विवरण---यह पं० सीतारामजी के पुत्र माथुर चतुर्वेदी ब्राह्मण हैं। इस समय यह श्यामसुंदर-हाईस्कूल, चंदौसी में अध्यापक हैं। उदाहरण- प्राचीन भारत भय था भू को दिखाने के लिये श्रच पा रही सुख-शांतिदा होली प्रफुल्लित निज हिये । है कर रही श्रादेश उत्तम चाब से प्रिय देश को भाषा पढ़ो कोई कहीं, त्यागो न तुम निज भेष को । नाम-( ४४२६) सुखदेवप्रसाद तेवारी ( उपनाम विनय- मोहन) नरसिंहपुर-निवासो । जन्म-काल-लगभग सं० १९५६ । रचना-काल-सं० १६७-1 विवरण --स्फुट लेखक तथा समालोचक हैं । वीरात्मा के नाम से कविता भी करते हैं। समय -संवत् १९७६ के अन्य कविगण --(५४३०) अमरनाथ झा एम० ए०। जन्म-काल-सं० १९५४ रचना-काल-सं० १। अंथ-(1) हिंदी-साहित्य-संग्रह, (२) हिंदी साहित्य-रन । 3