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मिश्रबंधु

सं० १८१ चक्र उत्तर नूतन & समय-संवत् १९८१ के अन्य कविगण नाम-(४४६६) सूर्यनारायण व्यास (सूर्य), उज्जैन-निवासी। जन्म-काल--सं० १९६० । रचना-काल-सं० १९८१ ग्रंथ-स्फुट रचना। निवरण- -श्राप अच्छी ज्योतिष जानते हैं तथा बड़े मिलनसार हैं। कविता सरस करते हैं। उज्जैन में एक कवि-मंडल श्रापके कारण कायम है। उदाहरण- ऐ बीरवर्य भारत, तेरी सदा विजय हो, तेरे खुले गगन में, सुख-सूर्य का उदय हो। निज प्रेम-रस्सियों से, मंन की लहर जगा दे, भारी विपत्ति में सी, मेरा हृदय अभय हो। श्राशीष पूर्ण दीजै, हो श्रात्सवल सदा ही, पीछे नहीं हहूँ मैं, चाहै महाप्रलय हो । देखू तुझे सुखी मैं, बस है यही मनीषा , ऐ प्राण-धन तुझी पर, मेरा शरीर लय हो । नाम--(४४६७ ) केदारनाथ मिश्र गौड़ 'प्रभात', बाकरगंज (पटना)। जन्म-काल-सं० १९६७ । रचना-काल-लगभग सं० १९८५ उदाहरण- मा! यद्यपि हम बालक ही हैं, कुसुम-सुकोमल और अबोध ! फिर भी तेरे चरणों में बस, यही हमारा है अनुरोध ! निःसंकोच हमें दे दे, अपने हाथों की तीक्ष्ण कुठार ! होने दे यदि पश्य देख यहा जग में होगा हाहाकार !!