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मिश्रबंधु

मिनबंधु विनोद सं०.१९८४ चक्र

उदाहरण- कब तक देखू राह प्राणप्रिय ! इन मिलनोत्सुक नयनों से रुव तक पी की लगन लगाऊँ इन बिरहाकुल बयनों से । कब तक हाय ! न दर्शन देकर मुझको कहो सतायोगे कब तक दारुण विरह-व्यथा में और अधिक तड़पाओगे। कब तक निष्ठुर वन जीवनधन ! सुझको नाथ रुलाओगे i कब तक मेरे शुष्क हृदय में प्रेम सुधा बरसाओगे। कब तक हे मेरे अराध्य ! मम दुःखित हृदय जुड़ामोगे; कब तक निज चितवन दिखलाकर हिय की कली खिलाओगे। कब तक अपने कर - कमलों से सुंदर साज सजाओगे; कब तक मिलन बारि बरसाकर सुख - तरुवर सरसायोगे । कब तक प्रियतम बतलानो तो, मीठी हँसी हँसानोगे; नाम--(४५०५) जगन्नाथप्रसाद मिश्र 'उपासक' जौरा 'अलापुर ग्राम ग्वालियर-राज्य-निवासी रंगलाल शास्त्री के पुत्र । जन्म-काल-सं० १९६६ । रचना-काल-सं० १९८४ ग्रंथ-स्फुट रचना। उदाहरण- अंबर पथ में बिखरी हों जब निखरी तारक-मालाएँ स्वागत करती हों निशेश का गा-गाकर पिक बालाएँ। मलयजमारुत में उठती हो किसी व्यथित की अंतिम धूल ; हँस-हँसकर नभ वातायन से बरसाता हो शशधर फूल । इस दुखिया की सुख-समाधि पर खड़े-खड़े होते जाना अरे पथिक संमृति की स्मृति में पल-भर तो रोते जाना! नाम--( ४१०६ ) जैनेंद्रकुमार, दिल्ली । जन्म-काल-सं० १९६१ (अलीगढ़)। 3 .