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मिश्रबंधु

1 मिश्रबंधु-विनोद सं० १९८५ चक्र सात, पिता, सुत, नार, कोई नहीं संगी हुवै ; मतलब से संसार, चोडे दीसे चतरजी। नाम-(४५२१) करुणाशंकर शुक्ल 'करुणेश' कानपुर- निवासी। जन्म-काल-लगभग सं० १९६० ॥ रचना-काल-सं० १९८५ विवरण-स्फुट पद्यकार । नाम-(४५२२) कालीप्रसाद भटनागर 'विरही। जन्म-काल-सं० १६६२ । ग्वालियर-राज्यांतर्गत कुंभराज-ग्राम, पिता का नाम झम्मनलाल । रचना-काल-सं० १९८५ ग्रंथ-स्फुट रचना। विवरण-आपको कुछ कविताओं पर पदक भी प्राप्त हुए हैं कविता में चित्त लुभानेवाली नवीनता एवं रहस्यात्मिका सद्वृत्ति है। उदाहरण- तुम प्रकाश हो, अंधकार मैं, कैसे तुमको पाऊँ ? इस असीम अंतर को हा! मैं कैसे आज मिटाऊँ? तुम आते हो, मैं सकुचाकर अपना रूप छिपाता; तुम जाते हो रूठ, तभी मैं सिर धुनकर पछताता। करता हूँ प्रस्ताव उपा के द्वारा हे प्राणेश क्या मिलना स्वीकार करोगे धर संध्या का वेश ? नाम-(४५२३ ) गदाधरप्रसाद वैद्य, लखनऊ। रचना-काल-सं० १९८५ ग्रंथ-(१) ब्रज-मानंद-विनोद, (२) बारहमासा, (३) सत्यसागर, (४) सत्यार्थप्रकाश का पद्यमय अनुवाद । गो. तुलसी दास की शैली पर बहुत सरल तथा रोचक भाषा में किया है, जिसमें १०० सफ़े हैं। 3