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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं० १३ चंक बन नखवारे की सु हाँक हुमकत, मानौ. सील पै गनीमन के गाज गमकत है ॥२॥ नाम--(४५४४) हरस्वरूपजी मिश्र 'हरेश', लश्कर ग्वालि- यर-निवासी । पिता का नाम मुन्नालालजी मिश्न एम० ए० । जन्म-काल-सं० १९६४ । रचना-काल-सं० १९८५ ग्रंथ--स्फुट रचना। विवरण-श्राप आगरा-कॉलेज से इस साल एम० ए० तथा ला का इम्तिहान देंगे। कविता की ओर विशेष रुचि रखते हैं । उदाहरण- 3 + . भावना की भूख में उड़ाता गुंग का-सा गुड़, तैरूं बना हंस कल्पना के मानसर में तरल तरंगों में बनाके नाव कागज की तिनके की तरह चलाऊँ दिन - भर में। खाता रहता हूँ मनमाने मनमोदक मैं, हसता हूँ देख - देख मंजुल सुकर जानता नहीं हूँ कौन-सा है घर मेरा, किंतु घूमता हूँ अपना समझ घर-घर में। नाम-(४५४५) हरिकृष्ण प्रेमी', गुना ग्वालियर-राज्य- निवासी। जन्म-काल- 1-सं० ०१६(८1 रचना-काल-सं० १९८५ प्रथ-स्फुट कविता। --