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मिश्रबंधु

प्राचीन कविगण । न गोपाचल थान ताको कहे सब ग्वालियर, ग्वाली सिंध राजै गढ़ सोभा को विहार है। पूरन पुरान तहाँ कविता बनाय कीन्हो, दासातन भाव और नाहिन विचार है; राखे मन आश वास वृदावन भावे जाहि, गाचे 'मयाराम' कृष्ण-लीला निज सार है। नाम-~-( ०४७) वसुदेवानंद। ग्रंथसस्संग-भूषण। रचना-काल-सं० १७६३ लगभग। विवरण -- श्रापके विषय में कवि दलपतराम ने यों कहा है- वासुदेव वरुनीस ., पुनि मैं करूँ प्रणाम काव्य-कला-वेदार्थ-विद, क्षमा-दया के धाम ! सो नैष्ठिक वृत वंद, मूर्ति मानु वैराग्य की धर्म-तनुज, धीमत, जासु उत्तारी भारती। नाम-(थ) मेरुविजय । ग्रंथ-बारहमासी (खंड काव्य)। रचना-काल १८वीं शताब्दी का अंत । विवरण-आप जैन-संप्रदाय के थे । ग्रंथ में श्रृंगार रस वर्णित है। नाम-(या) विट्ठल । ग्रंथ-सिंहासन-बत्तीसी। रचना-काल- -१८वीं शताब्दी का अंत । नाम-(७५° ) वीरेश्वर । ग्रंथ--बारहमासा। रचना-काल---सं० १७६९ । .