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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद श्रायर बिन मिट्टी में मिल बाऊँ पावें घड़ियां । - मुरझाझर भी देश - धूलि में पंखुड़ी - पंखुड़ी सनी रहे। बलि-वेदी पर चढूँ, और मेरी बलि-वेदी बनी रहे। रसिक - शिरोमणि मिश्रबंधु दो भाव-कंज को सौरम-दान; भेट तुच्छ ही सही, किंतु- अब कर लें यह स्वीकृत श्रीमान् । नाम-(४५८६) वीरेंद्रबहादुरसिंह 'लाल' संस्कृत-हिंदी- कवि, सेमरी, जिला रायबरेली। जन्म-काल-सं० १९६१ । रचना-काल-सं. १९१०। ग्रंध-संस्कृत में वीरेंद्र-वाचनावली (प्रकाशित), (२) ब्रह्मर्षि विलास, (३) स्तुति-मालिका । विवरण- -आप श्रीमान् रघुराजसिंह तअल्लुकदार सेमरी, जिला रायबरेली के द्वितीय पुत्र हैं। आपने संस्कृत, अंगरेजी तथा हिंदी पढ़ी है। अंगरेजी में एफ० ए० की परीक्षा देकर पढ़ना बंद कर दिया। कविता से विशेष प्रेम है, संस्कृत और हिंदी की कविता अच्छी करते हैं । बड़े ही, होनहार युवक हैं। उदाहरण- त्वदीयपदपकजकान्तिपुज-- सन्दीप्तिमानयसुदेतिः सहसरश्मिः।