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मिश्रबंधु

उत्तर नूतन : $ जानते विश्वाश्रये विविधवैभवरूपिणित्व- मम्ब प्रसीद परमेश्वरि पाहि लोकान् ॥१॥ जगदंब तय . पद-पद्म का ही कांति पुंज दिनेश है उस कांति का सुळकाश भानोदय प्रकाश विशेष है। हे विश्वके! हे प्राश्रये ! ऐश्वर्य का तुम रूप हो। मा! लोक की रक्षा करो, तुमहीं प्रसन्न स्वरूप हो। नैपोस्ति सूर्यो थुमणिश्च नैव नैवाग्निराशिन कान्तिपुजः । उदेति संसारशिवाय नित्यं स्वदीय पादाम्बुजरेणुपिण्डः ॥२॥ कर दे प्रवृत जो कर्म में, यह भानु तो वह है नहीं। यह धुमणि अथवा अग्नि की भी राशि दिखलाता नहीं। यह कांति-पुंज नहीं, वरन् संसार-तारण तव कंज-पग-युग-रेणु का पिंड इसको मानते। ब्रह्माण्डजन्मस्थितिनाशहेतुं शक्ति सदा यां यते महेशः। त्वं विशुद्धा प्रगतमसन्ना सर्वेश्वरी पातु सुखरदा नः॥ ३ ॥ ब्रह्मांड के उत्पत्ति, पालन और नित संहार में- ईश्वर चलाता कायं नित जिस शक्ति के प्राधार में। तुम हो वही निज भक्त की मानस-विहारिणि संविझे! है ! शक्ति हो सुखदायिनी रक्षा करो जगदविके ! नाम-(४५८७) एन० एल० दे 'अनिल'। जन्म-काल-सं० १९१२। रचनाकाल-सं० १९१० । विवरण-बार प्रयाग-निवासी स्व. बजेटलाल के द्वितीय पुत्र सा -