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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं.१९९. हैं। सन् १९२० ई० में लखनऊ से डॉक्टरी पास की। भाजकाल रायबरेली में प्राइवेट प्रेक्टिस करते हैं । बंगला, हिंदी तथा संगीत के विशेष प्रेमी हैं। चित्रांकन से भी प्रेम है। बड़े ही उत्साही तमा कवितानुरागी युवक हैं। उदाहरा--- भारतवर्ष नील जलधि से उठकर पाई जिस दिन जननी भारतवर्ष, जगा विश्व में सुख का कशरत भलि, प्रीति औ महान हर्ष! प्रभा तुम्हारी प्रभात लाई, भशेष हुई दुख की रजनी; . हुई बंदना-'जय जग - धात्री ! जगत्तारिणी ! जय जननी !" घन्य धरणी तेरे चरण-कमल पा स्पर्श! गाई-"जय-जय जगन्मोहिनी ! जग की जननी भारतवर्ष " सारनान से वलन सित है, चिकुर सिंधु के शीकर-लिस; शीर्षे . गरिमा. विमल हास्य से

गगन नर्तन बेरकर तारावली. श्री चंद्र