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मिश्रबंधु

उत्तर मूतन मंत्र-सुत्र घरगों पर जलाधि गरजता जलप्रद मंद ! धन्य धरणी चरण कमल पा गाई- -----"जय-जय जगन्मोहिनी ! जग की जननी भारतवर्ष " जंघा तुपार फिरीट शीष पर, जवधि ऊर्मि घेरे वज्ञ बिलंबित मुलामाला पंच सिंधु, जसुना, गंगा ! तस दीप्त भीषण मरु- में भकर होती, जननी! श्याम सस्य के मधुर हास्य में विसित कभी निखिल नवनी! धरणी तेरे चरण-कमल का स्पर्श! गाई-जय जय जगन्मोहिनी ! की जननी भारतवर्ष " -? पवन गगन में प्रबल स्वनन में गरज गरजकर अपरिश्रांत अवनत होकर पिक कलरव · से चूमे तेरा चरण प्रांत नम पर वारिद इलिश - पात से यारले प्रलम - खधित की वृधि,