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मिश्रबंधु

मिभबंधु-विनोद सं.... कुंज में पद में तेरे कुंज करता कुसुम गंध की सृष्टि ! हुई है धरणी तेरे चरण कमल का पा स्पर्श ! गाई-"जय जय जगन्मोहिनी ! की जननी भारतवर्ष " 11 . श्रत . शांति वक्ष में जननी तेरे मधुर कंद में है अभयोकि ! करती वितरण करों से, चरणों से देती है मुक्ति ! जननी, तुझको संतति कितना वेदन, कितना हर्ष ! जगत पालिनी ! जगत्तारिणी ! जग की जननी भारतवर्ष ! धरणी चरण-कसल का पा गाई-"जय जय जगन्मोहिनी! जग सी जननी भारतवर्ष !" नाम-(१५८) दयाशंकर वाजपेयी 'गिरीश'। जन्म-काल-सं० १.१४६ । रचना-काल-सं.१९६० । ग्रंथ-स्फुट छंद । विवरण -श्राप पं० केदारनाथ के पुत्र, जन्म-स्थान केलोली, जिला रायनरेली। श्राप हिंदी, बँगला जानते हैं, अँगरेज़ी की शिक्षा स्पर्श!