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मिश्रबंधु

. मिश्रबंधु-विनोद सं. १९ आज तक छोटे-बड़े सभी सम्मेलनों से प्राप्त हुई समस्याओं की पूर्ति अपने ही विषय में की है। कविता का प्रारंभ सन् १६१८ ई० से हैं। उदाहरण- करते वह कामना है हिय में, जिसमें विष-बीज फरा करते धरते पग हा उस मारग में, जिसमें नए कोटे चुभा करते। जिल अंथि को खोलना ध्येय रहा, उसे वारि.भिगोय कसा करते। करतूति अशेष' की न्यारी प्रभो, नित धोखे तुम्हें भी दिया करते। भव-सिंधु-तरंग बहाती मुझे, निराधार अधार सुना करते बिन तेरी कृपा नहिं पार मिलै, बहु यत्न 'अशेष' किया करते । अघी एक हूँ कोटिन में ये सही, कलि में इससे भी गिरा करते मरजी में तुम्हारे जो आए प्रभो, इस दीन को पार लगा करते । नाम- -(४५६०) पं० रामावतारजी शुक्ल 'चातुर' । विवरण-इनका जन्म विक्रमीय संवत् १९५० में, जिला रायबरेली के अंतर्गत मुहल्ला सरयूपूर में हुआ । इनके पिता पं० वंशगोपालजी शुक्ल एक प्रसिद्ध वकील तथा बड़े जमींदार थे। यह अपने तीन भ्रातानों में सबसे कनिष्ठ हैं । ज्येष्ठतम भ्राता पं० गयाप्रसादजी शुक्ल जिला रायबरेली में प्रसिद्ध 'ऐडवोकेट' हैं । तथा दूसरे भ्राता पं. द्वारिकाप्रसादजी शुक्ल 'शंकर' गोंडा में सबजन हैं; और प्रसिद्ध कवि हैं । बाल्यकाल ही से 'चातुर'जी को हिंदी से विशेष अनुराग था। इन्होंने पद्य-रचना बीस साल की ही आयु से प्रारंभ की थी। साहित्य-सेवा के भाव से प्रेरित होकर आपने एक साहित्यिक मंडल की। स्थापना रायबरेली में की है, जो 'चातुर-मंडल' के नाम से प्रसिद्ध है। आपकी कवित्व-शक्ति के परिचयाथ कुछ छंद नीचे दिए गए हैं। उदाहरण- जाहि सुमिरत सिद्धि सकल सुकाज होत , पाप हूं परात देखि एकई रदन को <