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मिश्रबंधु

प्राचीन कविगण - संपति धनेसु, महिमा करि महेसु अरु, बुद्धि को गनेस भौ, प्रताप को दिनेस भौ। बाढ्यौ जाको चंदु परताप नव खंडनि मैं, जगमग्यौ जाहिर जहान जस जालु है; दुनी पर दीननि के दारिद बिदारिबै को- देव-तरु-सम देख्यो कर को हवालु है। पथ्थ सों समथ्थ श्रीकुंवरपालजू को लाल, जासों जुरि जंग को गहत करवालु है। श्रीजदु नृपाल-कुल श्रौतस्यौ गुपाल-सम, बखत बिलास श्रीगुपालु महिपालु है। नाम-( ६ ) सोहिरोबानाथ, महाराष्ट्र-प्रांत । ग्रंथ-स्फुट। जन्म-काल-सं० १७७५ । कविता-काल-१८०० । विवरण--यह सावंत बाडी राज्य के निवासी थे। वैराग्य ग्रहण कर इन्होंने उत्तरीय भारत का भ्रमण किया। महादाजी सेंधिया से मथुरा में भेंट होने पर इन्होंने उनको अपनी रचनाएँ भी सुनाई थीं, किंतु वह विशेष तुष्ट नहीं हुए, तव कबि ने यह छंद कहा। उदाहरण--- अवधूत नहीं गरज तेरी, हम बेपरवाह फकीरी । तू है राजा हम हैं योगी, पृथक पंथ है न्यारा ; छत्रपती सब सरिख तिहारे, पाँवन परत हमारा । फौजबंद तुम, झोलीबंद हम, चार खूट जागीरी । 'तीन काल में आया फिरता, घर-घर अलख पुकारी । सोना-चाँदी हस ना चाहैं, अलख भुवन के बासी; महल-मुलुक सब रोम-बरावर, हम गुरुनाम-उपासी।