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मिश्रबंधु

६२ मिश्रबंधु-विनोद तैं बी डूबा, हमैं डुवाया, तेरा हम क्या लीया । मोहरा कटै मनो मेंहदाजी, जोग प्रकाश गवाया । नाम-() चाँदण शासन, गुजरात-प्रांत । रचना-काल-सं० १८०२ । प्रथ-(१) चारणी पिंगल, (२) केसर रास । विवरण-आप पाटणी के राणा चंद्रसेन के श्राश्रित थे। चारणी- भाषा के आप अच्छे ज्ञाता थे। मंथ में पाटणी के राणा हरपाल मकवाणा के बड़वान राज्य स्थापन करनेवाली शाखा के अजमाल तथा चंद्रसेन राजा का उल्लेख है। आपका दूसरा ग्रंथ ऐतिहासिक काव्य । इसमें वीरम गाँव के निकटस्थ पाटणी-राज्य के साला- वंशीय राजाओं के युद्धों तथा उस राज्य के स्थापन के वर्णन हैं। कहा जाता है, स्वयं कवि ने अपने आश्रयदाता चंद्रसेन के साथ युद्ध में भाग लिया था। इस प्रथ में वीर रस की. सुख्यता है। उदाहरण- दुदाला श्रीदतमाला, उरे अरणे दे अणि वुहुमताबि सुडालास प्रवित्रम्, आननहा सत्ति नमो ईश ! सजे दल दखणी सकेजे नजदीणा निशाण; बड़ भादस बड़े भान थी, खड़े आप रिसाण । दामूजी सरदार दले, पुलरू मुहि चाले ; सुवादार भाखै सौनजे, उसु मखराले । नाम-(८६६) सुखसाखर । ग्रंथ -सम्मेलाचल-माहात्म्य । रचना-काल-सं० १८०३ । विवरण-ग्रंथ जैन-पुराणों के साधार पर लि हुआ है। H