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मिश्रबंधु

प्राचीन कविगण नाम--(२३) भगवान, सूरत शहर । ग्रंथ-शृंगार-सिंधु । जन्म-काल-सं० १७७० । कविता-काल-१८०७ । विवरण-यह कृष्णदास के वंशज, जाति के पाटीदार थे। उदाहरण- चलि गयो चंद औ तरैयाँ रही भोर की-सी, ससि को सरूप गयो छाले रहे आन जू; मुक्ताहल गयो पार सीप को समूह फैल्यो, माखन गयो है रह्यो भक्तन में पान जू । भरमि सुकवि सत्य सरदाक बानि कहे, कृष्णदास जू के कुल अथै गयो दान को कलस फूटो कवि को तिलक छूटो, गुन को जहाज लूटो गयो 'भगवान' जू। नाम-(२४) मधुकर (माधवसिंह, महाराजा जयपुर)। राज्य-काल-सं० १८०७ से १८२४ तक । मंथ--स्फुट कविता-संग्रह । विवरण- आपका प्रख्यात नाम माधवसिंह था, किंतु कविता में श्राप अपना नाम 'मधुकर' अथवा 'मधुकरराज' रखते थे। नाम-(८३४) लखपतिजी, महाराव कच्छ (गुजरात- भान जू; प्रांत)। राज्य-काल-सं०१८०८-१८१७ । ग्रंथ-लखपति-शृंगार । विवरण-आप कच्छ के महाराज थे। आप बड़े गुण-ग्राहक, विद्यानुरागी पुरुप थे । आप कई भाट तथा चारण कवियों के आश्रय- दाता थे। आपका ग्रंथ शृंगार रस की एक अपूर्व रचना है । ब्रज