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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद विवरण-नथ में जैन-तीर्थंकरों का वर्णन है। नाम--(११५३) अमरदास । ग्रंथ-भगतीपद। रचना-काल-सं० १८९० । विवरण-थ में देवीजी की स्तुति नराच-छंदों नाम-( ११५३ ) कृपाराम खिड़िया चारण सोकर, रियासत जयपुर। समय-सं० १८६०। विवरण- [-यह महाशय जाति के चारण सीकर के राव देवीसिंहजी तथा उनके पुत्र राव राजा लपमणसिंहजी के समय (१८६०) में वर्तमान थे। कहा जाता है, इन्होंने ३६० सोरठे बनाए, किंतु अब तक १५४ उपलब्ध हुए हैं। श्रापके ये सोरठे ठाकुर चतुरसिंह, बीकानेर ने अपने 'अर्वाचीन प्राचीन सोरठा-संग्रह'-नामक ग्रंथ में प्रकाशित किए हैं। यह कवि नं० ६६७ पर आए हुए कृपाराम, जयपुरवालों से भिन्न प्रतीत होते हैं । इन्हें लछमनपुरा ग्राम, जो आगे 'कृपाराम की ठानी' नाम से प्रख्यात हुआ, दान में मिला था । यह कवि ठाकुर चतुरसिंह राष्ट्रबर, बीकानेर द्वारा हमें ज्ञात हुए हैं । उदाहरण- सुचि अट्ठारासै के प्रागर पुनि अट्ठावन; बद असाढ़ तिथि बीज प्रगट दिनकर दिन पावन । सहगयंद सिर पाव कड़ा भूषण मोताहल . साँसत लछमन पुरो जमीने पालू साजल । पोकर सुथान मिलिया नृपति अति उदार प्रापरसु अच्छ; कवि राम रीझ सेखा तिलक लहर एक दीधी सुलच्छ । नाम-( १ ) जानकीराम त्रिपाठी कुदौली, नरवल, कानपुर।