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मिश्रबंधु

प्राचीन कविगण ७६ त्रिपाठीजी एम० चर्च कॉलेज, जन्म-काल-सं० १८३. के लगभग । रचना-काल-अनुमानतः सं० १८६० । ग्रंथ-(१) बारहमासा-वर्णन, (२) स्फुट छंद । विवरण-श्राप पं० लालमणिजी त्रिपाठी के पुत्र थे । आप पाँच भाई थे । इन कवि महाशयों का विस्तृत वर्णन पं० लक्ष्मीकांत क्राइस्ट कानपुर ने 'श्रीशारदा'-पत्रिका की दो संख्याओं ( फरवरी तथा मार्च सन् '१९२३ ) में लिखा । इसी लेख के आधार पर हमने उक्त कवि का जन्म-काल तथा परिचय दिया है । हिम्मतवहादुर नरेंद्रगिरि महाराज की प्रशंसा में भी इनके छंद है । पं० लक्ष्मीकांतजी त्रिपाठी का कथन है कि यह महाशय उनके पूर्वजों में से थे, और उनके पास इनका उपर्युक्त ग्रंथ खंडित रूप में है। उदाहरण- जोर झकोर सों वायु बहे लगे लोग निवास बनावन छावन । कोकिल के बुल चातक चोप के मोर हु सोर लगे सरसावन । प्यौ परदेस सँदेस विना भए गाढ़ असाढ़ के चौस भयावन; धुंधरे धुंधरे धूमरे धीर धुकारत ये धुरवा लगे धावन । श्याम घटा घनघोर उमंडित मंडित है नभ-मंडल छायो धार अखंडित के वरलै तरफैं धर तम तोम सुहायो । झिल्लिन, मोरन, दादुर थोर न ठौरन-ठौरन सोर मचायो; 'जानकीराम विदेश उटू भटू भादवें में नहिं भावतो श्रायो। नाम-(११५८) रघुनाथ । काल-सं. १८६०। अंथ-रस-मंजरी (नायिका-भेद)। विवरण --महाशय भालेरावजी का कथन है कि उन ग्रंथ में १२१ दोहे, १२६ सवैए और एक कवित्त हैं । 3