पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/९

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मिश्रबंधु

re- भूमिका, चतुर्य भाग (मिश्रबंधु-विनोद) में पहले प्रायः २६४ कवि थे, किंतु अब प्रायः १५०० हो गए हैं। इनमें से बहुतेरों ने स्वयं हमारे पास पत्र द्वारा अपना हाल लिख भेजा है, तथा बहुतों के हाल उनके मित्रों आदि के द्वारा ज्ञात हुए हैं। कहीं-कहीं हाल भेजनेवालों के नाम भी लिख दिए गए हैं, किंतु ऐसा बहुत ही कम हो सका है। ऐसा लिखने का विचार जब से उठा, उससे पूर्व सैकड़ों लोगों के हाल लिखे जा चुके थे। अतएव जहाँ कहीं हाल काआधार ग्रंथ में न हो, वहाँ स्वयं कवि के अथवा उसके मित्रों के पत्रों का आधार समझना चाहिए । बहुत-से कवि हमको स्वयं ज्ञात हैं । ऐसे स्थानों पर बहुधा ऐसा लिख भी दिया गया है, किंतु कई कारणों से सब कहीं ऐसा नहीं हो सका है। इस भाग के कथनों के आधार दृढ़ हैं। नंबर इसमें सिलसिलेवार हैं, किंतु कहीं-कहीं 'अ' आदि के भी नंबर आ गए हैं। यह एक प्रकार की भूल समझनी चाहिए, सिद्धांत नहीं। आगे के संस्करणों में पह भी निकल जायगी। समय के देखते हुए चौथा भाग कुछ बड़ा अवश्य है, किंतु विनोद मुख्यतया कवि-कृतियों का कथन है, सो ज्ञात हाल छोड़ देना अनुचित समझा गया। वास्तव में बहुतेरी साधारण ज्ञात घटनाएँ छोड़ भी दी गई हैं, नहीं तो ग्रंथ दूना हो जाता। आशा है, स्थानाभाव के भय से जो हमें ऐसा करना पड़ा है, उसके लिये कविगण क्षमा करेंगे। लखनऊ विनीत सं०१९९१ मिश्रबंधु