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मिश्रबंधु

निशबंधु-विनोद वल्लरी दरीचिन में ल लटकारा करें, गुंफित लतान-मध्य ग्रंथित फलान की; राधा महारानी महाराज कृष्णचंद्रजू की, भारती उतारा करें दारा देवतान की। नाम-(98) भगतीराम उपनाम खुशराम, कृष्णगढ़। कविता-काल-१८80 के आस-पास । परिचय- -आप भी वृदजी के वंशधरों में थे। उदाहरण-रानी जतनकुंवरि के सती होने का वर्णन । कृष्णगढ़ चढ़ती रती सो भई रानावत, सती सत्य सुकृत को कर्म करिबो करी कहें 'खुशराम' श्राग अंक भरि धीरज सो, वर बखतेशजू को ध्यान धरियो करी । रुपटकर, लाय की लपट सौं लपट लरिबौ करी । प्रेम-अनुराग भरी गौरी ज्यों सुहाग भरी, भाग-भरी भूरि आग भर जरिबौ करी । नाम-(१८२६) मनोहरदास स्वामी, गुजरात-प्रांत । काल [-१९वीं शताब्दी का अंतिम समय । ग्रंथ–स्फुट कविताएँ। विवरण- आप रामानंदी संप्रदाय के साधु थे। नाम-(१८१°) शिवराखन वाजपेयी (शिवराज), असनी। 1-प्रायः ११वौं शताब्दी का अंत । ग्रंथ-कविप्रिया की टीका । विवरण-आप धनी के वाजपेयी, असनी के रहनेवाले थे। आपका महाराज बौंड़ी से प्रगाढ़ प्रेम था, और कहा जाता है कि वहीं राम रट भट पट कपट .या कविता-काल