पृष्ठ:मुण्डकोपनिषद्.djvu/८९

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खण्ड २] शाङ्करभाष्यार्थ ८१ दवभासमानम् । किं बहुना ब्रह्मैव वह ब्रह्म ही अन्य पदार्थोके समान स्तादूचंच सर्वतोऽन्यदिव कार्वा- नीचे-ऊपर सभी ओर कार्यरूपसे कारेण प्रसृतं प्रगतं नामरूपव-। नामरूपविशिष्ट होकर फैला हुआ भास रहा है। अधिक क्या? यह इदं विश्वं समस्तमिदं जगद्वरिष्ठं विश्व अर्थात् सारा जगत् श्रेष्ठतम वरतमम् । अब्रह्मप्रत्ययः सर्वो- ब्रह्म ही है । यह सम्पूर्ण अब्रह्मरूप ऽविद्यामात्रो रज्जामिव सर्प- प्रतीति रज्जुमें सर्पप्रतीतिके समान अविद्यामात्र ही है । एकमात्र ब्रह्म प्रत्ययः । ब्रह्मैवैकं परमार्थसत्य- ही परमार्थ सत्य है-यह वेदका मिति वेदानुशासनम् ॥ ११॥ 'उपदेश है ॥ ११ ॥ इत्यथर्ववेदीयमुण्डकोपनिषद्भाष्ये द्वितीयमुण्डके द्वितीयः खण्डः ॥२॥ समाप्तमिदं द्वितीयं मुण्डकम् ॥२॥