पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/११७

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मुद्राराक्षस बार सेवक था, उसने आपके थोड़े ही कृपा से हाथी, घोड़ा घर धन सब पाया। पर इस मय से भाग कर मलकेतु के पास चल' गया कि यह सब छिन न जाय । वह जो, सिंहबजदत्त सेनापतीक छोटा भाई भागुरायण है उससे पर्वतक से बड़ी प्रीति थी सो उस कुमार मलयकेतु से यह कहा कि "जैसे विश्वासघात करो चाणक्य ने तुम्हारे पिता को मार डाला वैसे ही तुम्हें भी मार डालेग इससे वहाँ से भाग चलो। ऐसे ही बहकाकर उसन कुमार मलयको को भगा दिया और जब आपके बैरी चंदनदासादिक को दंड हुआ तष मारे डर के मलयकेतु के पास जा रहा। उसने भी यह सममका कि इसने मेरे प्राण बचाए है और मेरे पिता का परिवित भी है २९ उसको कृतज्ञता से अपना अंतरंग मंत्री बनाया है। वे जो रोहिताच और विजयवर्मा थे, वे ऐसे अभिमानी थे कि जब आप उनके नातेदारों का आदर करते थे तब वे कुढ़ते थे, इसीसे वे भो मलयको के पास चले गए । बस यही उन लोगों की उदासी का कारण है। .. चंद्रगुप्त-मार्य, जब इन सब के भागने का उद्यम जानते ही थे, नो क्यों न रोक रखा ? चाणक्य-ऐसा कर नहीं सके। चंद्रगुप्त-क्या असमर्थ हो गए, वा कुछ उसमें भी प्रयोजन था। चाणक्य - असमर्थ कैसे हो सकते हैं ? उसमें भी कुछ प्रयोजन ही था। चंद्रगुप्त-आर्य! वह प्रयोजन मैं सुना चाहता हूँ। चाणक्य-सुनो भोर भूल मत जाओ। चंद्रगुप्त-धार्य मैं सुनता हुई हूँ, भूलूँगा भी नहीं । कहिए। चाणक्य-मब जो लोग उदास हो गए हैं या बिगड़ गए हैं उन दो ही उपाय हैं-या तो फिर से उन पर अनुग्रह करे । उनको दें। भद्रभट और पुरुषदत्त से जो अधिकार ले लिया गया है अब उनपर अनुग्रह यही है कि फिर उनको उनका अधिकार दि जाय । पर यह हो नहीं सकता, क्योंकि उनको मृगया, मद्यानादि का जो व्यसन है उससे वे इस योग्य नहीं है कि हाथी घोड़ों