तुर्थ अंक प्रतिहारी-इधर आवे महाराज, इधर भावें। चद्रगुप्त-( उठकर चलता हुआ आप ही आर) गुरु-श्रायसु छल तो कलह करिहू जीय डराव । किमि नर गुरुजन सों लरहिं यहै सोच जिय, हाय ! ॥ [सब जाते है-जवनिका गिरती है । इति तृतीयांक • चतुर्थ अंक स्थान-मंत्री राक्षस के घर के बाहर का प्रांत
- [करमक घबड़ाया हुआ आता है ]
करमक-अहा हा हा ! अहा हा हा! अतिसय दुरगम ठाम में, सत जोजन सों दूर । कौन जात है धाइ बिनु प्रभु निदेस भरपूर । 'अब राचस मंत्री के घर चलू । (थका सा घूम कर) 'मरे कोई चौकीदार है ? स्वामी राक्षस मंत्री से जाकर कहो कि 'करभक काम पूरा करके पटने से दौड़ा आता है। . (दौवारिक आता है) दौवारिक-अजी! चिल्लाओ मत । स्वामी राक्षस मंत्री को राज काज सोचते सोचते सिर में ऐसी विथा हो गई है कि अब तक सोने के बिछौने से नहीं उठे, इससे एक घड़ी भर ठहरो। अवसर १० मिलता है तो मैं निवेदन किए देता हूँ। (परदा उठता है और सोने के बिछौने पर विता में भा राक्षस और शकरदास दिखाई शक्षस-(आप ही आप) कारज उलटो होत है कुटिल नीति के जोर । का कीजे, सोचत यहाँ जागि होय है भोर ।।