पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/१३

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शात होता है कि वे शैव थे जैसा कि नामों से तथा मंगल चरण के दोनो श्लोकों में शिव की स्तुति होने से माना जाना चाहिए । मुद्राराक्षम की कुछ प्रतियों में भरतवाक्य में चंद्रगुप्त के स्थान पर अवंतिवर्म का नाम दिया गया है । इस नाम के मालवा के मौखरी वंश के एक राजा थे, जिनके कि नाटककार आश्रित -हो सकते हैं। इस विषय पर आगे चल कर विचार किया जायगा ।

विशाखदत्त एक सामंत सर्दार के पौत्र तथा महाराजा के पुत्र होने के कारण कुग्लि राजनीति के पूर्ण ज्ञाता थे और स्वयं भी उड़ी प्रकार के समाज में रहने के कारण श्रृंगार, करुण आदि मृह रसों का उनके हृदय में बहुत कम- संचार हुआ था। उन्होंने स्वभावत: राजनीतिक विषय पर ही लेखनी उठाई और उसमें वे पूर्णतया सफल हुए। उनकी कवित्व शक्ति के बारे में केवल यही कहा जा सकता है कि वे कालिदास या भवभूति के समकक्ष नहीं थे। इस नीरस राजनीति विषयक नाटक से भिन्न इनके दो नाटक देवीचंद्रगुप्त तथा अभिसारिका वंचितक के कुछ अंश मिले हैं। इनके दो अनुष्टुभ श्लोक वल्लभ- देव की सुभाषितावली में संग्रहीत हैं और उनकी अन्य कृतियाँ, यदि हों तो, अब अप्राप्य हैं। इनके नाटक से इतना अवश्य ज्ञात होता है कि ये ज्योतिष शास्त्र के भी ज्ञाता थे।

४--अनुवादक-परिचय

सुप्रसिद्ध सेठ अमीचंद के दो पुत्र राय रलचन्द बहादुर श्री शाह फतह चन्द काशी में आ बसे थे। शाह फतहचन्द दस भाई थे पर वंग केवल इन्हीं का चला। इनके पुत्र बाबू हर्षचन्द्र असंख्य संपत्ति के स्वामी हुए और उसे सत्यकार्य में व्यय करके उन्होने बहुत यश कमाया। उनके पुत्र बाबू गोगलचन्द उपनाम गिरिधर दास हुए जिन्होने चालीस ग्रंथों की रचना की। इन्हीं के पुत्र हरिश्चंद्र हुए।

भारतेंद्र बाबू हरिश्चंद्र का जन्म भाद्रपद शुक्ला पंचमी स० १६०७ को हुआ था। आपने पांच ही वर्ष की अवस्था में एक दहा रचा था, जिस पर उनके पिता ने उन्हें आशीर्वाद दिया था। नौ वर्ष की अवस्था में पिता का परलोकवास हो गया।उसी समय ये पहले राजा शिवप्रसाद से अंगरेजी पढ़ने। लगे, फिर कालेज में बैठाए गए। तीन चार वर्ष बाद सं० १६२१ में ये