पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/१४

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के साथ नगन्नाथ जी कर गए और तब से इनका पढ़ना लिखना छू गया! यहाँ से लौटने पर देशहित के लिये पाश्चात्य शिक्षा आवश्यक समझ कर इन्होंने चौखंभा स्कूल खोला, जो अब हरिश्चंद्र हाईस्कूल कहलाता है। म. १९२५ में कविवचनसुधा का जन्म हुआ। पाँच वर्ष बाद हरिश्चंद्र- मैगनीन आरंभ हुई पर पाठ ही अंक निकल कर बंद हो गई । इसी वर्ष इन्होंने पेनी रीडिंग समाज स्थापित किया और कर्पूरमंजरी तथा चंद्रावली नाटकों की रचना की।

बाबु हरिश्चंद्र ने धर्मसंबंधी और ऐतिहासिक अनेक पुस्तकों की रचना की है, जिनमें तदीयसर्वस्व और काश्मीर कुसुम चुने हुए प्रन्थ हैं। इन्होंने अधिकतर मरकों और काव्यों ही की रचना की है, जिनमें सत्यहरिश्चंद्र, चन्द्रावली और प्रेम-फुलवारी प्रधान हैं। इतिहास की ओर अधिक रुचि होने के कारण आपकी प्रायः सभी रचनाओं में उसका संबंध प्रस्तुत है। श्रापने पारितोषिक दे देकर भी हिन्दी भंडार में बहुत से ग्रन्थ रत्नों का संचयन किया है। आप जैसे प्रतिभावान विद्वान् और बहु-कला-कुराल थे वैशे ही गुणग्राहक भी थे।गुणियों का यह इतना उचित सम्मान करते थे कि इनके यहाँ सर्वदा विद्वानों,कवियों तथा, अन्य कला-कुशल गुणियों का जमाव रहा करता था।

भारतीय राष्ट्रभाषा हिंदी का प्राकाशमंडल जब घोर तिमिराच्छन्न हो रहा था उस समय भारतेंदु के उदय होने से जो प्रकाश फैला था उस प्रकाश के लिये हिंदी भारतेंद जी की चिरऋणी बनी रहेगी। हिंदी जगत ने इसी प्रकाश के लिये म० हरिश्चंद्र को भारतेंदु की पदवी देकर सम्मानित किया था और इस उपाधि का राजा प्रजा दोनों ने समान रूप से प्रादर किया है।

भारतेंदु बा० हरिश्चंद्र जी पैंतीस वर्ष की अवस्था में माघ कृष्ण ६ सं० १९४१ (६ जनवरी १८८५ ई.) को गोलोक सिधारे । आपके दो पुत्र तथा एक कन्या हुई थी पर दोनों पुत्र शैशवावस्था में ही जाते रहे।कन्या के पाँच पुत्र हुए जिनमें तीन वर्तमान है।

५--नाटकीय घटना का सामयिक इतिहास

मगध देश या मागधों का प्रथम उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है। पुराणों से पता लगता है कि महाभारत युद्ध के पहले मगध देश में वाहंद्रयों का राज्य