पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/१६१

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मुद्राराक्षस नाम चंदन- आँसू भरकर ) हाय ! ये मेरे मब मित्र बेचारे कर नहीं कर सकते, केवल रोते हैं और अपने को अकर्मण्य समा शोक से सूखा सूखा मुह किये आँसू भरी आँखों से एक टक मेरों ही ओर देखते चले आते हैं। दोनों चांडाल-अजी चंदनदास ! अब तुम फाँसी के स्थान पर भा चुके इससे कुटुंब को बिदा करो। चंदन--(स्त्री से ) अब तुम पुत्र को लेकर जाओ, क्योंकि भा* तुम्हारे जाने की भूमि नहीं है! स्त्री-ऐसे समय में तो हम लोगों को बिदा करना उचित ही है। क्योंकि आप परलोक में जाते हैं, कुछ परदेश नहीं जाते। (रोती है ) चंदन०-सुनो ! मैं कुछ अपने दोष से नहीं मारा जाता, एक . मित्र के हेतु मेरे प्राण जाते हैं, तो इस हर्ष के स्थान पर क्यों रोती है? स्त्री-नाथ ! जो यह वात है तो कुटुब को क्यों बिदा करते हो १३० चंदन-तो फिर तुम क्या कहती हो? बी-(आँसू भरकर ) नाथ ! कृपा करके मुझे भी साथ ले चलो। चंदन-मा! यह तुम कैमी बात करती हो ? अरे ! तुम. इस बालक का मुंह देखो और इसकी रक्षा करो, क्योंकि यह बेचार कुछ भी लोक व्यवहार नहीं जानता। यह किमका मुंह देख कर जीएगा? स्त्री-इसकी रक्षा कुलदेवी करेंगी। बेटा! अब पिता फिर मिलेंगे, इसमे मिलकर प्रणाम कर ले। बालक-'पैरों पर गिर के) पिता ! मैं आपके बिना कर करूँगा? चंदन बेस! जहाँ चाणक्य' न हो वहाँ बसना। . दोनों चांडाल-(सूली खड़ी कर के ) अजी चंदनदास ! देखें सूली खड़ी हुई, अब सावधान हो जामो।