पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/१८०

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१०६. परिशिष्ट ख - ६५-कौटिल्य-कुटिल नीति चलानेवाले चाणक्य का अन्य नाम ।

६८-वंश-इस शब्द का यहाँ अत्यंत श्लिष्ट प्रयोग हुआ है।

अग्नि में वंश अर्थात् बाँस जलाना है, इसी प्रकार चाणक्य की क्रोधाग्नि में नंदवश का नाश हुआ था। इसमें परम्परित रूपकालकार है। ६६-मानी-मानकर, समझकर।। नाटक के पूर्व सूत्रधार, नटी आदि जो प्रस्तावविषयक कथोपकथन • करते हैं, उसी को प्रस्तावना कहते हैं। यह पाँच प्रकार की होती है- ५. सद्घात्यक, कथोद्घात, प्रयोगातिशय, प्रवर्तक और प्रवर्गालत । मुद्राराक्षस की प्रस्तावना प्रथम प्रकार की है। सूत्रधार प्रभृति के वाक्यों का दूसरा अर्थ लगाकर जहाँ पात्र या पात्रों का प्रवेश होता है उसे उद्गात्यक कहते हैं। यहाँ भी सूत्रधार के ग्रहणविषयक बातों का अर्थ चंद्रगुप्त पर घटाकर चाणक्य प्रवेश करता है। .. प्रथम अंक ... १-२-अपनी खुली...."चाणक्य आता है-प्रस्तावना के अंत में इस वाक्य से मुखसंधि का प्रारंभ होता है। पूर्वकथा से नाटक की घटना का संबंध स्थापित करना मुखसंधि है। यहाँ नंद वंश के नाश के धनंतर चंद्रगुप्त के राज्यश्री की स्थिरता के लिए चाणक्य के कहे हुए वाक्य और दैवात् मुद्रा प्राप्त कर राक्षस को मिलाने के उपायों का पूर्वकथा से संबंध दिखलाना ही मुखसंधि है। नंदवंश के नष्ट होने पर भी चंद्रगुप्त के राज्य के दृढ़तापूर्वक स्थापित होने पर नाटक के अंत में चाणक्य ने शिखा बाँधी थी। वेणीसंहार में द्रौपदी की चोटी खोलने बाँधने का भी इसी प्रकार उल्लेख है।

५-८-दंति-बड़े दातों वाला अर्थात् हाथी। दंवि शब्द हाथी के

लिए रूढ़ि हो गया है।