पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/१९९

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· १२८ मुद्राराचास नाटक युहेची जाति से पराजित होकर भारतवर्ष की सीमाओं पर आ बसी थी जहाँ से चलकर ईसवी सन् से लगभग एक शताब्दी पूर्व इस जाति ने भारत के पूर्वोत्तर प्रांत पर अधिकार कर लिया था। एक समय इनका राज्य नर्मदा तक फैल गया था। इनका चलाया शक संवत् इनके ऐश्वर्य का द्योतक है। ईरानी लोग आयोनिया वालों से संबंध से ग्रीकों को यऊन कहते थे, जिससे संस्कृत का यवन शब्द व्युत्पन्न है । किरात पहाड़ी जाति थी, जो तीर चलाने और अहेर खेलने में बड़ी कुशल थी। कांबोज जाति हिंदुकुश पर्वत के आस पास बसती थी। वालोक देश बलख को कहते हैं, जिसे यूरोपीय जातियों ने वैक्ट्रिया नाम दिया है। अधिक वृत्तांत भूमिका में देखिए। १६६ १६८-विराधगुप्त वर्तमान में हुई बातों के कहने के पहले मिलान मिनाने के लिए पूर्व की बातें कहता है कि किस प्रकार कुसुमपुर घेर लिया गया था। . १६६-इस प्रकार के आवेग से राक्षास में धैर्य की कमी और गर्व का होना सूचित होता है। ___१०१-१७४-राक्षस कुसुमपुर को घिरा हुआ समझ कर दुर्ग के रक्षार्थ सेना को आज्ञा देता है कि बुजों, दीवारों पर धनुर्धारी सेना भेजो, जिसमें वे शत्रु सेना पर तीरों की वर्षा करें, फाटकों पर मस्त हाथी रखो, जिसमें शत्र के हाथियों से युद्ध करने के लिए वे तैयार रहें और उन वीरों को जिन्होंने मृत्यु को जीत लिया है अर्थात् मृत्यु से नहीं डरते और यश को सर्वोपरि समझते हैं युद्धार्थ तथा यशो. पार्जन के लिये मेरे साथ शत्रु के विरुद्ध जाने को नियत करो। । भुजंगप्रयात् छद है । वीररस का स्थायी भाव उत्साह है। १७६-मूल के अनुसार अनुवाद में 'मैं अतीत की बातें कर रहा हूँ,' बढ़ाया गया है। १७७-मूल के अनुसार अनुवाद का पहला पाठ 'कौन बात सुन ? अब मैंने जान लिया कि इसी का समय आगया है,' बदल कर 'क्या अतीत.."घटना है। पाठ रखना पड़ा।