- परिशिष्ट ख
१३१ है। इन प्रबन्धों से चाणक्य की दूरदर्शिता तथा सजगता प्रकट होती है।
- २४४.२४७-तब उस..."मारा गया-मूल का अक्षरशः अनु-
___ वाद यों है-इसके अनंतर जघन पर भाघात लगने की आशंका
- से हथिनी ने जल्दी चलकर अन्य गति का अवलंबन किया। हथिनी
पहले जिस गति से चलती थी उसी के अनुसार छोड़ा गया यंत्र
- लक्ष्यभ्रष्ट हो गया और छूग खीं श्ने में हाथ को फँसाए हुए तथा
'चंद्रगुप्त समझ कर वैरोचक को मारने को उद्यत वर्वरक दारुवर्मा द्वारा मारा गया। ___ २६५-चाणक्य ने उसको देख लिया अर्थात् औषधि को देख । उसमें विष होने की शका कर उसकी परीक्षा की। २७३-संस्कृत में दो पाठ मिलते हैं-'आत्मविनाशः' और यदितरेषाम् ।' इनका अर्थ हुमा-'अपना नाश' और 'जैसा औरों - २८०-राक्षस दैत्र को दोष देता है पर उसकी असफलता का कारण चाणक्य को सतर्कता तथा उसके घरों की असावधानता थी। २६७-३००-चंद्रगुप्त को मारने के लिए जो विषकन्या भेजी गई उससे पर्वतक को मारा, जिसका आधे राज्य पर स्वत्व था। मारने के लिए जिन लोगों को भेजा वे सब अपने कल । यंत्र ) और बन ( शस्त्रादि ) के साथ मारे गए, इस प्रकार मेरी नीति से उलटा मौर्य का ही मंगल-साधन होता है। इनमें विषमालंकार है क्योंकि विफल-मनोरथ होने से अपना ही अनिष्ट संभव होता है। . ३०२-३०५-अवम श्रेणी के पुरुष विघ्न के डर से किसी. कार्य को प्रारंभ नहीं करते, मध्यम श्रेणीवाई आरंभ कर विघ्न आ जाने से बीच ही में उसे छोड़ देते हैं ( यद विघ्न न पाने के कारण वे उसे पूरा कर लें तो भी उन्हें वह महत्ता नहीं मिल सकती जो उत्तम श्रेणीवालों को मिलती है । और उत्तम कक्षा में वे होते हैं जो अनेक विघ्नों क रहते भी अपने कार्य को अंततः सफलता से पूर्ण करते हैं।