पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/२१

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लेने को प्राणपण से लगा था। निःस्वार्थता ही तक दोनों समान है, पर इससे परे व कहाँ तक एक दूसरे से भिन्न हैं, यह स्पष्टतया दिखला दिया गया है। चाणक्य दूरदर्शी, हदप्रतिज्ञ और कुटिल नीति में पारंगत था। उसे अपने ऊपर पूर्ण विश्वास था और उसकी मेधा तथा स्मरण शक्ति बलवती थी। इन्हीं गुणों के कारण उसने शत्रु के षडयंत्रों को निष्फल करते हुए उनसे स्वयं लाभ उठायां और निज उद्देश्यसिद्धि के लिये उन्हीं का प्रयोग ठीक समय पर कर सफल प्रयत्न हुआ। इसमें मनुष्यों के पहचानने की शक्ति भी अपूर्व' थी, पर इसके विपरीत राक्षप ने अंत तक अपने विश्वत मनुष्यों से ही धोखा खाया। शत्रु के यहाँ से भाग पाने को इसने उत्तम प्रमाण तथा प्रशंसापत्र मान लिया था। एक बार इस विषय पर शंका हुई थी ( देखिए अं० ५५० २३५-६ ) पर वह भी अंतिम समय में । राक्षस वीर सैनिक था पर राजनीति के कुटिल मार्गों का वह अच्छा ज्ञाता नहीं था, जिससे कभी कभी भून कर जाता था। ( देखिए अंक २५० १३७ की टि. ) यह स्वभाव से मृदुल था और उदार हृदत होने के कारण किसी पर अविश्वास नहीं करता था। स्वामी के सव नाश हो जाने के दुःख तथा उनका बदला लेने के उत्कट उत्साह से भी मेवाशक्ति प्रान्छादित हो रही थी। घटनामों के वर्णन में यह विशेत्रता भी है कि सब बातें ठीक वैसी ही होती थीं जैसा कि चाणक्य चाहता था। कहीं भी उसकी इच्छा के विपरीत कोई घटना नहीं हुई। ऐसा जान पड़ता है कि चाणक्य घटनाओं का अनुशासन उसी प्रकार करता था जैसे काठ की पुतली नचाने वाला सूत्रों को हाथ में पकड़ कर इच्छानुकूल उनसे कार्य कराता है। इस अवस्था में या तो हम चाणक्य की वहज्ञता और दूरदर्शिता का परिचय पाते । अथवा कवि पर अस्वाभाविकता का दोष लगा सकते हैं। कभी कभी अनुकूल घटनाएँ ठीक समय पर हो जाती है पर श्रादि से अंत तक चाणक्य द्वारा प्रेरित सब घटनाओं का सरोतर उतरना नाटक की स्वाभाविकता में वाधक होता है। अस्तु चाणक्य का नाम विष्णुगुप्त था पर चणक का पुत्र होने से चाणक्य तथा कुटिल नोति का प्रवर्तक होने से वह कौटिल्य कहलाया। इसे काम सूत्रकार वात्स्यायन भी बतलाया जाता है। संस्कृत कोषकारों ने इसके ना