पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/२२४

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विशिष्ट व १५५ १०४.५-भेद खुल जाने के डर से मंत्रिगण राजाओं के सामने वृत्तांत दूसरी प्रकार कहते हैं और आपस में स्वेच्छालाप के मय अन्य प्रकार से बातें करते हैं। है. यह मूल का अर्थ है । अनुवाद में केवल पहला अंश दिया गया भेज खुलने के भय-रूप हेतु से काव्यलिंग अलंकार हुपा। १. १२०-८-हे नृपससि! ( राजाओं में चंद्र के समान नृप नंद) पद्यपि चंद्र ( चंद्रगुप्त) द्वारा प्राप्त चाँदनी 6 कौमुदी महोत्सव } मदों के सहित (राज्य-हर्षवर्द्धक ) उदित है पर वह संसार को मानंद देने वाली तुम्हारे बिना शोभा नहीं पाती। .. 'चंद चाँदनी कुमुदन सहित' में श्लेष है। चंद्रगुप्त से नृप शशि द का अधिक उत्कर्ष प्रतिपादन करने से व्यतिरेकालंकार हुआ। विनोक्तियद् विनाऽत्येन न साध्वन्यद् माधु वा' के अनुसार एक चंद्र के रहते अन्य चंद्र बिना चाँदनी और कौमुदी महोत्सव के शोमा नहीं पाने से विनोक्ति अलंकार हुमा । कारण के रहने से काव्यलिंग को हुआ। - १३२-इसके अनंतर राक्षस का एक प्रश्न और करमक का एक त्तर छूट गया था। उसे मूत्र के अनुसार बढ़ा दिया गया है। १३७८-छोटे मनुष्य भी अकारण रस-भंग नहीं सहते, तो होकाधिक तेज धारण करने वाले राजे कैसे सहेंगे। मल का भाव अनुवाद में आ गया है पर अकारण शब्द का न माना कुछ खटकता है। छोटे मनष्य नहीं सहते तो राजा कैसे सहेंगे स विचार से पोंपत्ति अलंकार हुआ। १५६-मूल के अनुसार 'अब चंद्रगुप्त के कोप के अन्य कारणों ती खोज से क्या फल निकालेंगे' होना चाहिये। १६०-हाथ में आ जायगा-मूल के 'हस्सतनगत: भविष्यति' का अनुवाद है। इससे दो अर्थ निकलते हैं-पकड़ा जायगा और मेल जायगा। राक्षस ने पहला अर्थ लेकर कहा था पर भागुरायण । उसका उलदा अर्थ लगाया अर्थात् राक्षस चंद्रगुप्त के मिल जाने र उसकी ओर हो जायगा।