पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/२४६

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मुद्रासचन नारा ६-७-अपथ्यं करने से केवल रोगी ही की मृत्यु होती है पर राजद्रोह करने से कुल-सहित वह मनुष्य नष्ट होता है, ऐसा जानो। मूल के पूर्वार्द्ध का भाव है कि 'अपथ्य से पुरुष को केवल व्याधि वा मृत्यु होती है। मूल से अनुवाद में भाव अधिक है। १५-१६-मूल इस प्रकार है-'प्रार्य ! तब इनकी शुभ गति की प्रार्थना करिए । इनके प्रतीकार का उपाय करना आप के लिए निष्प्रयोजन है।' पहले यह नियम था कि जिसे सूली दी जाती थी वही सूली के ढोकर वधस्थान तक ले जाता था। १७-२५-अनुवाद में स्त्री द्वारा कहलाया गया है पर मून । पंक्ति १७-२६ तक चंदनदास ही का कथन है। १८-फूंक फूंक कर पैर रखना-बहुत समझ बूझ कर चलना पाप कर्म से दूर रहना। १६-मूल के अनुसार इस प्रकार चाहिए-काल देवता को नम स्कार है । नृशंस व्यक्तियों के लिए मित्र और उदासीन एक से हैं। २१-२२-मारे जाने के डर से माँस खाना छोड़ कर मृगा तृण घास खाकर जीवन बिताते हैं पर निर्दय बधिक उन्हीं तृण-भोई गरीबों को मारते हैं। भाव यह है कि निर्दय लोग निषिों को ३ दुःख देते हैं। मप्रस्तुत बधिक द्वारा मृग का वध दिखलाकर प्रस्तु चाणक्य द्वारा चंदनदास का वध दिखलाने से प्रस्तुतप्रशंसालं का दोनों में विवतिबिंब भाव होने से दृष्टांतालंकार और मृत्युभय । माँसाहार छोड़ना अतिशयोक्ति है। २५:-यह पंक्ति मूल से अधिक है । परदेश जाते समय कुटु लोग साथ साथ नहीं जाते पर मृत्यु के अनंतर परलोक जाते सम सभी कुटु'वी श्मशान तक साथ जाते हैं। ५८-मन में वेणुवेत्रक के स्थान पर बिल्वपत्र है। ६४-इससे ज्ञात होता है कि पुत्र पिता से उदारता में कम न था __..-मल में सेनापते, शूलायतन: या शूलपाते तीन' पाठ मिल हैं। पर यहाँ संबोधन चांडाली ही को है जिनके लिए सेनापति