पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/२५५

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१६३ परिशिष्ट य कहते हैं, कि गुहसेन नामक किसी अपर पडित की भी एक टीका हैं किन्तु देखने में नहीं आई। महाराज वंजौर के पुस्तकालय में व्यासराज यज्वा की एक टीका और है। - चद्रगुप्त की कथा विष्णु पुराण, भागवत भादि पुराणों में और वृहत्कथा में वर्णित है। ___महानद अथवा महापद्म नंद भी शूदा के गर्भ से था और करते है, कि चंद्रगुप्त इसकी एक नाइन स्त्री के पेट से पैदा हुआ था। यह पूर्व पीठिका में लिख गये हैं कि इन लोगों की राजधानी पाटलिपुत्र थी। इस पाटलिपुत्र (पटने ) के विषय में यहाँ लिखना कुछ आवश्यक हुआ। सुर्यवंशी सुदर्शन राजा को पुत्री पाटलो ने पूर्व में इस नगर को बसाया। कहते हैं कि कन्या को बंध्यापन के दुःख और दुर्नाम से छुड़ाने को राजा ने एक नगर बसाकर उसका नाम पाटलिपुत्र रख दिया था। वायु पुराण में जरासंध के पूर्व पुरुष वसुराजा ने विहार प्रांत का राज्य संस्थापन किया, यह लिखा है। कोई कहते हैं कि वेदों में जिन वसु के यज्ञों का वर्णन है वहो राज्यगिरि राज्य का संस्थापक है। (जो लोग चरणाद्रि को राजगृह पर्वत बटलाते हैं उनका केवल भ्रम है। इस राज्य का प्रारंभ चाहे जिस तरह हुआ हो जरासंध ही के समय से यह प्रख्यात हुआ है। मार्टिन नाइब ने जरासंघ के विषय में एक अपूर्व कथा लिखो है। वह कहते हैं कि जरासंध दो पहाड़ियों पर दो पैर रखकर द्वारिका में जब खियाँ नहातो थीं तो ऊँचा होकर उनको धूरता था इसी अपराध पर श्रीकृष्ण ने उसको मरवा डाला !!! । प्रियदर्शी, प्रियदर्शन, चंद्र, चंद्रगुप्त, श्रीचंद्र, चंद्रश्री, मोय यह सब दुगुप्त के नाम है ओर चाणक्य, विष्णुगुप्त, द्रोमिज वा द्रोहिण, अंशुज, कौटिल्य यह सब चाणक्य के नाम हैं। कहते हैं कि विकटपल्ली के राजा वंद्रदास का आख्यान लोगों ने इन्हीं कथाओं से निकाल लिया है। I सुदर्शन सहस्रबाहु अर्जुन का भी नामांतर था, किसी किसी ने भूल । पटली को श द्रक की कन्या लिखा है।