पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/२५६

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१६४ मुद्राराक्षच नाटक मगध शब्द मग से बना है। कहते हैं कि श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब ने शाक द्वोप से मग जाति के ब्राह्मणों को अनुष्ठान करने को बुलाया था और वे जिस देश में बसे उसकी मगध संज्ञा हुई, जिन' अग्रेज विद्वानों ने 'मगध देश' शब्द को मद्ध (मध्यदेश) का अप : भ्रंश माना है उन्हें शुद्ध भ्रम हो गया है । जैसा कि मेजर दिल्फर्ड : पालीवोत्रा को राजमहल के पास गंगा और कोसी के संगम पर: बतलाते और पटने का शुद्ध नाम पद्मावती कहते हैं। यों तो पाली, नाम के कई शहर हिन्दुस्तान में प्रसिद्ध है किंतु पालीबोत्रा पाटलिपुत्र हो है सोन के किनारे मावलो एक स्थान है जिसका शुद्ध नाम महा- बजी पुर है। महावली नंद का नामांतर भी है, इसीखे और वहाँ प्राचीन चिह्न मिलने से कोई कोई शंका करते हैं कि बलीपुर का बलिपुर का पानीबोत्रा अपभ्रंश है किंतु यह भी भ्रम ही है। राजाओ, के नाम से अनेक ग्राम बसते हैं, इसमें कोई हानि नहीं, किंतु इन लोगों की राजधानी पाटलीपुत्र ही थी। कुछ विद्वानों का मत है कि मगलोग मिश्र देश से आये और यहाँ आकर lsiris और Osiris. नाम देव और देवी की पूजा प्रचलित की। यह दोनों शब्द ईश और ईश्वरी के अपभ्रंरा बोध होते हैं। किसी पुराण में महाराज दशरथ ने शाकद्वीपियों को बुलाया यह लिखा है। इस देश में पहले कोल और चेरु (घोल ) बहुत रहते थे। सुनक और अजक इनमें प्रसिद्ध हुए। कहते हैं, कि इन दोनों को लड़कर ब्राह्मणों ने निकाल दिया। इसी इतिहास से भुइंहार जाति का भी सूत्रपात होता है और जरासंध के यज्ञ से मुइँहारों की उत्पत्तिवाली किन्बदन्ती इसका पोषण करती

  • भारतवर्षीय राजदर्पण प्रथम खंड में शिखा है । “यह भी प्रसिद्ध

. है कि मगधाधिपति महाराज जरासंध के यह के समय लक्ष ब्राम्हण भोजन करने के प्रयोजन होने पर राजा के अचात में उनके कोई धर्माध्यक्ष जिनको जाम्हणों के ले पाने की श्राशा हुई थी उनने अनेक कष्ट से भी आज्ञानुयायी माम्हन संग्रह करने में असमर्थ होकर राज्यदंड के भय से अपर जाति में होमों के मले में यज्ञोपवीत डाल भोजन करवा दिया। पीछे उन सबों ने