पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/३०

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( २५ ) जाति का वर्णन किया है, जिन दोनों जातियों का अपिशाली ने चौद्रक- मालव' समास में उल्लेख किया है तथा महाभारत में भी दोनों जातियों का साथ ही उल्लेख है । मिस्टर के० एच० ध्रुव ने सुएनच्चांग के यात्रा- विवरण के अनुसार निश्चित किया है कि काश्मीर की पूर्वीय सीमा और कुलत के मध्य में मलय जाति का स्थान था । डाक्टर जे. बर्गे ने भी इस शब्द की कुछ विवेचना की है, जिसका सारांश भी यहाँ दे दिया जाता है । महाभारत [५० ६ श्लोक ३५६7 में जातियों की एक सूची में विदेह. मागध. स्वक्ष, मलय और विजय के नाम दिए हैं। विष्णुपुगण [ हाल संग० जि. २ पृ० १६५.६] में उसी क्रम से वे ही नाम दिए गए हैं। रामायण [को० ४ स० ४० श्लो० २५ ] में सुम्भ, मत्स्य, विदेह, मलय और काशीकोशल के नाम हैं। इनमें मगध, विदेह और काशीकोशल उत्तरी भारत के हैं और उनके साथ साथ रहने से मलयों के भी उत्तरी भारत के होने की संभावना है। रत्नकोश में मजय देश का उल्लेख है तथा अष्टाक्षर का मलय देशवासी होना लिखा है । नेपाल में गंडक और गप्ती के तटों पर बसा हुश्रा प्रांत वर्तमान समय में मन्मय भूमि कहलाता है।। लैसन ने [ इंडि. एटलस द्वितीय सं० जि० १ पृ० ३५] इस नाम का पर्वत .: भी लिखा है। मिस्टर ध्रव ने सुएनच्चांग के मोघ शब्द को मलय मान कर विवेचना की है, जिसे जुलीन अशुद्ध मानते हैं पर दूसरा पाठ सांपोहो चंक या चाँबा का द्योतक जान पड़ता है। संभव है कि पर्वतक ने अपने पुत्र का नाम उसी जाति पर रखा हो जिसका वह राजा था या जिसे उसने विजय किया था और उनी जाति के कुछ विद्रोही, जो प्रकट रूप में मलयकेतु से मिले थे, उसके राज्य का लोभ रखते रहे हों। मालवा-एक प्रसिद्ध प्रांत है, जो वर्तमान समय में सेंट्रल इंडिया एजेंसी के अंतर्गत है। ____यवन-यह शब्द भी ग्लेच्छ के ममान अनेक समय में अनेक जातियों के लिये व्यवहत हुआ है। महाभारत में 'योनिदेशाश्च यवनान्, लिखा है, पर यह योनि देश कहाँ है इसका उल्लेख नहीं है । स्यात् योनि और यूनान -

  • इंडियन एंटिक्वेरी, जि० १४ पृ० १०५-८ और ३२० ।