पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/४३

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आविर्भूतावलेपैरविनयपटुभिल्लंधिनाचार मागै'- मोहादैदंयुगीनरपशुभरतिभिः पीड्यमाना नरेंद्रः। यस्यक्ष्मा शांर्गपाणैरिव कठिन धनुर्व्याकिणांकप्रकोष्ठ बाहु लोकोपकारव्रतसफलपरिस्पंदधीरं प्रपन्ना ।। मुद्राराक्षस श्राशैलेन्द्राच्छिलांतः स्खलित सुरनदीशीक सारशीता. त्तीरान्ता नैकरागस्फुरितमणिरुवो दक्षिणस्यार्णवस्य । आगत्यागल्य भीतिपणतनृपशतैः .श्वदेवरियता, . चूडारत्नांशु रमस्तिव चरणयुगस्यांगुलीरंध्रभागाः ॥ ___ मंदसोर-स्तंभलेख का पाँचवा श्लोक आलौहित्योपकंठात्तलवनगहनोपत्यकादामहेन्द्रा- द-गंगाश्लिष्ट सानोस्तुहिन शिखरिण : पश्चिमादापयोधेः । सामंतैर्यस्य बाहुद्रविणहनभदैः पादयोगनमद्धि- श्चूडानांशुगजिव्यतिकरशवला भूमिभागः क्रियते ॥ मंदसोर स्तंभलेख के छठे श्लोक की अंतिम दो पंक्ति- नीचैस्तेनापि यस्य प्रणति भु नबला वर्जनक्लिष्ट मूर्ना चूडापुष्पोपहामिहिरगुलनृपेणार्चित पादयुग्मम् ॥ बस्टिस तैलंग ने जिन हस्तलिखित प्रतियों का मिलान किया है, उनमें से एक में अंतिम श्लोक के चंद्रगुप्त के स्थान पर अवतिवर्मा पाठ है। इस पर आप लिखते हैं कि इस नाम के दो राजाओं का पता चलता है। एक काश्मर-नरेश थे और दूसरे कान्यकुब्जाधिपति हर्षवर्धन के बहनोई मौखरीवश के अहवर्मा के पिता थे । काश्मीर-नरेश अवंतिवर्मा के बारे में आपका कथन है कि जिस प्रति में वह नाम दिया गया है, वह उस राज्य से इतने दूर प्रांत में मिली है कि उस संबंध से काश्मीर के राजा अदतिवर्म का ही नाटक में उल्लेख मानना उचित नहीं है। परंतु इस पर विचार करने से, यदि कुछ प्राचीन हस्तलिखित प्रतियों का इतिहास लिखा जाय, तो ज्ञात होगा कि उनमें से बहुतों ने दूर दूर की यात्रा को है, पूर्वोक्त तर्क को अव्यर्थ नहीं माना जा सकता । नाटककार के चंद्रगुप्त के स्थान पर अवंतिवर्मा का नाम :