पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/५५

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( ४८ ) नगर की ओर आया था किंतु कुश गड़ जाने से मेरे मनोरथ में विघ्न हा.. इससे जब तक इन बाधक कुशात्रों का सर्वनाश न कर लूंगा और काम न करूँगा। मटा इस वास्ते इनकी जड़ में देता हूँ जिससे पृथ्वी के भीतर इनका मून भी भस्म हो जाय।" शकटार के जी में यह ध्यान आया कि ऐसा पक्का ब्रह्मण जो किसी प्रकार राजा से ऋद्ध हो जाये तो उसका जड़ से नाश कर के छोड़े । यह सोच- कर उसने चाणक्य से कहा कि जो भार नगर में चलकर पाठशाला स्थापित करें तो अपने को मैं बड़ा अनुगृहीत समझू । मैं इसके बदले बेजदार लगा- कर यहाँ की सब कुशात्रों को खुदवा डलू गा। चाणक्य इस पर सम्मत हुआ और नगर में श्राकर एक पाठशाला स्थापित की। बहुत से विद्यार्थी लोग पढ़ने आने लगे और पाठशाला बड़े धूम धाम से चल निकली। ___ अब शकटार इस सोच में हुआ कि चाणक्य से राजा से किस चाल से बिगाड़ हो । एक दिन राजा के घर में श्राद्ध था, उस अवसर को शकटार अपने मनोरथ सिद्ध होने का अच्छा समय सोचकर चाणक्य को श्राद्ध का न्यौता देकर अपने सथ ले आया और श्राद्ध के श्रासन पर बिठलाकर चला गया। क्योकि वह जानता था कि चाणक्य का रंग काला, आखें लाल और दाँत काले होने के कारण नद उसको आसन पर से उठा देगा, जिससे चाणक्य अत्यंत क्रुद्ध होकर उसका सर्वनाश करेगा। और ठीक ऐसा ही हुश्रा-जब राक्षस के साथ नद श्रद्धशाला में पाया और एक अनिम त्रित ब्राम्हण को श्रासन पर बैठा हुश्रा और श्राद्ध के अयोग्य देखा तो चिढ़कर श्राश दिया कि इसको बाल पकड़ कह यहाँ से निकाल दो। इस अपमान से टोकर खाए हुए सर्प की भाँति अत्यंत क्रोधित होकर शिखा खोलकर चाणक्य ने सबके सामने प्रतिशा की कि जब तक इस दुष्ट राजा का सत्यानाश न कर लूंगा, तबतक शिखा न. बाँगा! यह प्रतिज्ञा " करके बड़े क्रोध से राजभवन से चला गया। . शकटार अवसर पाकर चाणक्य को मार्ग में से अपने घर ले. पाया और राजा की अनेक निंदा करके उसका क्रोध और भी बढ़ाया और अपनी . सब दुर्दशा कहकर नद के नाश में सहाया करने की प्रतिज्ञा को | चाणक्य ने कहा कि जब तक हम राजा के घर का भीतरी हाल न मान कोई उपाय