पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/६२

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( ५५ ) पूर्त पुरुषों को वेष बदल बदलकर भेद लेने को चारों ओर नियुक्त कया। चंद्रगुप्त को राक्षस का कोई गुप्तचर धोखे से किमी प्रकार की नि न पहुँचावे इसका भी पक्का प्रबंध किया और पर्वतक की विश्वास वातकता का बदला लेने का हद संगल से, परंतु अत्यंतगुप्त रूप से, उपाय सोचने लगा। राक्षस ने केवल पर्वतक की सहायता से राज के मिलने की प्राथा छोड़ कर कुछूत,* मलय, काश्मीर, सिधु और पारस इन पाँच देशों के राजाओं से सहायता ली। जब इन पांचों देश के राजा ने बड़े श्रादर से राक्षस को सहायता देना स्वीकार किया तो वह तोवर के निकट से :फर लौट आया और वहाँ से चद्रगुप्त के मारने को एक विषकन्या भेजी और अपना विश्वास- गत्र समझकर जावसिद्धि को उसके साथ कर दिया । चाणक्य ने जीवसिद्धि द्वारा यह सब बात जानकर और पर्वतक की धूर्तता और विश्वासघातकता से कुढ़कर प्रगट में इस उपहार को बड़ी प्रान्नता से ग्रहण किया और लानेवाले को बहुत सा पुरस्कार देकर विदा किया। साँझ होने के पंछे धूर्ताधिराज चाणक्य ने इस कन्या को पर्वतक के पास भेज दिया और इंद्रियलोलुप पर्वतक उसी रात को उस कन्या के संग से मर गया। इधर चाणक्य ने यह सोचा कि मलयकेतु यहाँ रहेगा तो इसको राज्य का हिस्सा देना पड़ेगा, उससे किसी तरह इसको यहां से भगावे तो काम चले । इस कार्य के हेतु भागुरायण नाम एक प्रतिष्ठित विश्वासपात्र पुरुष को मलयकेतु के पास सिखा ।

  • कुलूत देश किलात वा कुल्लू देश ।

+ विषकन्या शास्त्रों में दो प्रकार की लिखी हैं। एक तो थोड़े से ऐसे बुरे योग है कि उस लग्न में उस प्रकार के ग्रहों के समय जो कन्या उत्पन्न हो उसके साथ जिसका विवाह हो वा जो उसका साथ करे वह साथ ई. वा शंघ्र ही मर जाता है । दूसरे प्रकार की विषकन्या वैद्यकरीति से बनाई जाती थीं। छोटेपन से वरन गर्भ से कन्या को दूध में वा भोजन में थोड़ा थोड़ा विष देते देते बड़ी होने पर उसका शरीर ऐसा विषमय हो जाता था कि जो उसका अंगसंग करता वह मर जाता। र .